गोवंश के खूटे खाली, ट्रक्टर खड़ा दुआरे पे,
बूढ़ी काकी पड़ी कराहे, टूटी खाट उसारे पे!
कैसा ये परिवेश है बदला, नही बोलते भोर मैं काग़ा,
पैसा ही भगवान बन गया, फिरता आदमी भागा-भागा!
सौदागर हर मन मैं बैठा लोक लाज गंगा मैं डूबा,
धन-बल,जन-बल पास है जिसको पूरा करता हर मंसूबा
बोझ हो गये रिश्ते नाते, सुने सब त्योहार,
बहुए-बेटे टेंट निहारे, मतलब का त्योहार,
अच्छाई उपहास बन गयी हर आँगन के हिस्से!
रामायण,गीता टी.वी पर, घर-घर लैला-मजनू के किस्से
बचपन अब लाचार हो गया, क्या दाव लगाये जवानी के मतवारे पे,
बूढ़ा नीम का पेड़ कट गया, शान था कभी दुआरे पे,
बूढ़ी काकी पड़ी कराहे, टूटी खाट उसारे पे!
Regards,
Rajender Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com
Tuesday, August 10, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)