Wednesday, November 17, 2010

वक़्त-ए-सफ़र

वक़्त-ए-सफ़र करीब है, बिस्तर समेट लू,
बिखरा हुआ हयात का मंज़र समेट लू,

फिर ना जाने हम मिले ना मिले, ज़रा रूको
मैं दिल के आईने मे ये मंज़र समेट लू,

गैरो ने जो सुलूक किया उनका क्या गिला,
फेके है दोस्तो ने जो पत्थर समेट लू,

कल जाने कैसे होंगे कहाँ होंगे घर के लोग,
आँखों मे एक बार भरा घर समेट लू,

भड़क रही है ज़माने मे जितनी आग,
जी चाहता है सीने के अंदर समेट लू!!!

Thursday, November 4, 2010

Happy Diwali to All

कुछ नन्हे दीपक लड़ते है, अमावस के गहन अन्धेरे मैं,
कुछ किरणने लोहा लेती है, तन के एक अन्हद घेरे से,
काले अम्बरमे होती है आशाओ की आतिशबाज़ी,
उत्सव मे परिणीत होती है हर सन्नाटे की लफ़ाज़ी
उजियारे के मस्तक पर जब सिंदूरी लाली होती है,
उस घड़ी ज़माना कहता है, बस यही दीवाली होती है.

घर की लक्ष्मी एक थाली मे, उजियारा लेकर चलती है,
हर कोने, दहेरी,चोख्त को एक दीपक देकर चलती है,
दीवारे नये वसान धारे, तोरण पर बंधनवर सजे,
आँगन मे रंगोली उभरे और सरस डाल से द्वार सजे,
कची पाली के ज़िम्मे, आँखो की रखवाली होती है,
उस घड़ी ज़माना कहता है बस यही दीवाली होती है.......

आप को और आप के परिवार को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाए

Regards,
Rajender Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com

Tuesday, August 10, 2010

बदलता परिवेश!

गोवंश के खूटे खाली, ट्रक्टर खड़ा दुआरे पे,
बूढ़ी काकी पड़ी कराहे, टूटी खाट उसारे पे!
कैसा ये परिवेश है बदला, नही बोलते भोर मैं काग़ा,
पैसा ही भगवान बन गया, फिरता आदमी भागा-भागा!

सौदागर हर मन मैं बैठा लोक लाज गंगा मैं डूबा,
धन-बल,जन-बल पास है जिसको पूरा करता हर मंसूबा

बोझ हो गये रिश्ते नाते, सुने सब त्योहार,
बहुए-बेटे टेंट निहारे, मतलब का त्योहार,
अच्छाई उपहास बन गयी हर आँगन के हिस्से!
रामायण,गीता टी.वी पर, घर-घर लैला-मजनू के किस्से

बचपन अब लाचार हो गया, क्या दाव लगाये जवानी के मतवारे पे,
बूढ़ा नीम का पेड़ कट गया, शान था कभी दुआरे पे,
बूढ़ी काकी पड़ी कराहे, टूटी खाट उसारे पे!

Regards,
Rajender Chauhan
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Monday, July 12, 2010

देश मे डेवेलपमेंट

देश मे डेवेलपमेंट हो रहा है!!
अमीरो का काम अर्जेंट हो रहा है!!
ग़रीब बेचारा साइलेंट हो रहा है!!
देश को बेचने का अग्रिमेंट हो रहा है!!!!

चमचा अपनी जगह परमानेंट हो रहा है!!
ईमानदार बेचारा सस्पेंड हो रहा है!!
कार्यालय भी रॉस्टूरेंट हो रहा है!!

बच्चा बाप से इंटेलिजेंट हो रहा है!
घर-घर मे पार्लियामेंट हो रहा है!!

रिशवत से काम हेंड-टू-हेंड हो रहा है
नेता सभा समाप्त कर प्रेज़ेंट हो रहा है!!
देखो हमारे देश मे डेवेलपमेंट हो रहा है!!!


Rgds,
Rajender Chauhan
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Friday, June 4, 2010

तेरी याद

दुल्हनो के माथे पर लगी बिंदिया अच्छी लगी,
फूलो पर बैठी हुई, तितलिया अच्छी लगी,
जब से हम गिनने लगे, इन पर तेरे आने के दिन,
बस उसी पल से हमे ये उंगलियाँ अच्छी लगी!!!!!!

Thursday, May 13, 2010

A Night!!!

The Sun descending in the West,
The Evening Star does Shine;

The Birds are silent in the nest,
and I must seek for mine....

The Moon like a bower,
in heaven's high tower,
with silent delight,
sits and smile on the Night!!!!!


Poem by William Blake..

Regards,
Rajender Chauhan
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Saturday, May 1, 2010

ज़िंदगी का सफ़र

ये सफ़र ज़िंदगी का यू तय कर लिया जाए,
उठाकर कोई खत पुराना पढ़ लिया जाए!!

यू तो उम्र भर मुस्कुराते रहे हम,
दरिया अश्को का आँखो मैं भर लिया!!

याद मुझे हर वक़्त तेरी ही आई,
जब कभी मैं उधर निगाह उठाई!!

ख़ौफ़ मुझे मौत का ज़रा सा भी नही,
ज़िंदगी मैं ये "राज" कई दफ़ा मर लिया!!!!


Regards,
राजेंद्र चौहान
http://rajenderblog.blogspot.com

Thursday, April 1, 2010

जिस्म

एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो,
तेरी चांदनी में नहाऊं मैं और हर तरफ बस अंधेरा हो,
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो!

तेरे मखमली बदन में,खुशबुऒं के चमन में,
सदियों तक वो रात चले,सदियों दूर सवेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन , एक तेरा हो एक मेरा हो!

तेरे होठों को सिल दूं मैं अपने होठों के धागे से
एक सन्नाटे में खामोशी से, तेरी बाहों ने मुझको घेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो!

दोनों लिपटें एक दूजे से, गांठ सी लग जाए बदनों में
मेरे जिस्म में घर मिल जाए तुझे, तेरे जिस्म में मेरा बसेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो!

आज मन कहता है कि कुछ ऐसा हो, तू बन जाए मैं , मैं बन जाऊं तू
बिस्तर पे तेरे मेरे सिवा,सिर्फ ज़ुनून और खामोशी का डेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो!!!


Regards,
Rajender Chauhan
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Tuesday, March 16, 2010

एक कहानी हूँ मैं

अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,

रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....

सबको प्यार देने की आदत है हमें,
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,

कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...

इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,

जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,

आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,

"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं

Regards,
Rajender Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com

Friday, March 5, 2010

दोस्ती

फूलों सी नाजुक चीज है दोस्ती,
सुर्ख गुलाब की महक है दोस्ती,
सदा हँसने हँसाने वाला पल है दोस्ती,
दुखों के सागर में एक कश्ती है दोस्ती,

काँटों के दामन में महकता फूल है दोस्ती,
जिंदगी भर साथ निभाने वाला रिश्ता है दोस्ती ,
रिश्तों की नाजुकता समझाती है दोस्ती,
रिश्तों में विश्वास दिलाती है दोस्ती,

तन्हाई में सहारा है दोस्ती,
मझधार में किनारा है दोस्ती,
जिंदगी भर जीवन में महकती है दोस्ती,
किसी-किसी के नसीब में आती है दोस्ती,

हर खुशी हर गम का सहारा है दोस्ती,
हर आँख में बसने वाला नजारा है दोस्ती,
कमी है इस जमीं पर पूजने वालों की, वरना इस जमीं पर "खुदा" है दोस्ती.....

Regards,
Rajender Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com

Saturday, February 20, 2010

हम यू जीते है

हम यू जीते है, जीना भी खता हो जैसे,
ज़िंदगी सिर्फ़ गुनाहो की सज़ा हो जैसे!

मेरी खुशियाँ छीन कर हवा ले गयी मस्तानी,
जीवन की इस्थीर मंज़िल पर सिर्फ़ उदासी छोड़ गयी है!!

चाहा था फूलो का सौरभ पर काटो ने उलझाया है,
कलियाँ मेरे उपवन का रिश्ता पतझड़ से जोड़ गयी है!!

तेरी यादो से जो दूर रहू क्या बचेगा मेरे जीवन मैं,
मेरी हर साँस तुझ से जिंदा है, वरना क्या है मेरी धड़कन मैं!!!!


Regards,
Rajender Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com

Friday, January 8, 2010

वीरानिया

दोपहरी मैं जब रेत तपती है, धूप चटकती है !
आके जुबा पे बात रुकती है, आवाज़ भटकती है!

लाश बनकर भी जीना पड़ता है इंसानो को!
जब तक मौत नही आती सांस खटकती है!

जिंदगी के रेगिस्तान मे, न हो प्यार की बारिश अगर,
मौसम की बारिश जब बरसती है, आँख बरसती है!!

कुछ लोगो को तो जीना भी रास नही आता!
घर नही होता, जेब नही होती,भूख तो लगती है मरते दम तक!
जब नही होती एक तमन्ना पूरी,कयामत तक कहाँ-कहाँ, कोई रूह भटकती है!
किनारे पर आकर, जब डूब जाती है किस्ती,एक शक्श के बिना ये दुनिया वीरान सी लगती है!!

Another tribute to my mother!!


Regards,
Rajender Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com