अपने हर वादे को, भूल जाते रहे|
यू ही हर रात हमको, जगाते रहे||
हमने सोचा उन्हे भूल जाए मगर|
याद उतना ही वो, और आते रहे||
कई ज़माने तो यू ही, गुजरते रहे|
कल वो आएगे हम ये, मानते रहे||
एक सैलाब सा, अश्को का बन गया|
आप इतना हमे क्यू, रुलाते रहे||
श्रीमान:- वेदप्रकाश गुप्ता की क़लम द्वारा रचित!!!!
Rgds,
Rajender Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com
Thursday, November 5, 2009
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