Wednesday, August 19, 2009

रेत के टीलो पर घर नही बनते!!

रेत के टीलो पर घर नही बनते,
सूखी हुई शाख पर गुल नही खिलते. !!!!!!!!

रिश्तो मैं पड़ी गाँठ का खुलना है मुश्किल,
उलझी हुई यह ज़िंदगी, सुलझाना है मुश्किल!
काग़ज़ की नाव को किनारे नही मिलते,
रेत के टीलो पर घर नही बनते!!

आइना-ए-दिल मैं जब कोई सूरत बदल जाती है,
आँखो मैं बसी तस्वीर अश्को मैं बह जाती है,
उजड़ी हुई दुनिया मैं ख्वाब नही बिकते,
रेत के टीलो पर घर नही बनते!!

दिल मैं छिपे इस दर्द को अश्को ने ज़ुँबा दी है,
ज़ुँबा दबी-दबी सी सिसकियाँ, होंठो ने पनाह दी है!
पथराई हुई आँखो से आँसू नही बहते,
रेत के टीलो पर घर नही बनते!!


Regards,
Raj Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com

3 comments:

  1. पथराई हुई आँखो से आँसू नही बहते,
    रेत के टीलो पर घर नही बनते!!

    wow...simply awesome...

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  2. Thanks Nidhi...

    Rgds,
    Raj Chauhan
    http://rajenderblog.blogspot.com

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  3. Bhaiya,

    Marketing ka jamana hia.... Aajkal log... Ujari hooee duniya me hee Khawab bechate hain.....

    Regards
    Navrang
    http://navrangblog.blogspot.com

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