कुछ नन्हे दीपक लड़ते है, अमावस के गहन अन्धेरे मैं,
कुछ किरणने लोहा लेती है, तन के एक अन्हद घेरे से,
काले अम्बरमे होती है आशाओ की आतिशबाज़ी,
उत्सव मे परिणीत होती है हर सन्नाटे की लफ़ाज़ी
उजियारे के मस्तक पर जब सिंदूरी लाली होती है,
उस घड़ी ज़माना कहता है, बस यही दीवाली होती है.
घर की लक्ष्मी एक थाली मे, उजियारा लेकर चलती है,
हर कोने, दहेरी,चोख्त को एक दीपक देकर चलती है,
दीवारे नये वसान धारे, तोरण पर बंधनवर सजे,
आँगन मे रंगोली उभरे और सरस डाल से द्वार सजे,
कची पाली के ज़िम्मे, आँखो की रखवाली होती है,
उस घड़ी ज़माना कहता है बस यही दीवाली होती है.......
आप को और आप के परिवार को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाए
Regards,
Rajender Chauhan
http://rajenderblog.blogspot.com
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