Wednesday, November 17, 2010

वक़्त-ए-सफ़र

वक़्त-ए-सफ़र करीब है, बिस्तर समेट लू,
बिखरा हुआ हयात का मंज़र समेट लू,

फिर ना जाने हम मिले ना मिले, ज़रा रूको
मैं दिल के आईने मे ये मंज़र समेट लू,

गैरो ने जो सुलूक किया उनका क्या गिला,
फेके है दोस्तो ने जो पत्थर समेट लू,

कल जाने कैसे होंगे कहाँ होंगे घर के लोग,
आँखों मे एक बार भरा घर समेट लू,

भड़क रही है ज़माने मे जितनी आग,
जी चाहता है सीने के अंदर समेट लू!!!

1 comment:

  1. Kya Rajender bhai tumne to DIL hi nikal ke rakh diya hai.

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